जगदलपुर ..25 मई 2013 को सुकमा से लौट रहे कांग्रेसियों के काफिले पर झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था। इस हमले के साथ माओवादियों ने यह जता दिया था कि उनकी रणनीति पूरी तरह से कितनी तगड़ी थी.. और आज 25 मई को हमले..को 1 2 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन आज भी प्रदेसब और देश को इम्तेज़ार हैं .झीरम घाटी घटना का सच.क्या था..इस घटना के बाद सरकारो ने जांच टीम भी बैठा दी..लेकिन झीरम का जिन्न आज तक बाहर नहीं आया है.. आज भी इस इलाके में पहुचने वाले प्रत्यक्षदर्शी भी सहम जाते हैं और याद करते हैं कि घटना कितना दर्दनाक था...
वंही प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि हथियारबंद माओवादी न केवल गोलियां बरसा रहे थे, बल्कि ग्रेनेड से भी हमले भी कर रहे थे..एक-एक का नाम पूछकर उसका अंजाम तय किया जा रहा था...कुल मिलाकर वह दृश्य आज भी पीड़ित कांग्रेसियों की आंखों में झलकता हुआ समफ देखा जा सकता है... लोगों को उम्मीदें थीं कि झीरम घाटी नरसंहार का सच बाहर आएगा -तत्कालीन डा रमन सिंह की सरकार ने तत्काल 2013 में ही न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया... 2019 तक चली जांच जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने पूरी की और जो रिपोर्ट सरकार को पेश की, उससे असहमति जताते कुछ बिंदुओ को और जोड़े गया...इसके बाद इसकी सुनवाई बिलासपुर हाईकोर्ट में चली गई..राज्य पुलिस के वरिष्ठ अफसरों सहित राज्य के नामचीन नेताओं को मिलाकर 50 से अधिक लोगों के बयान भी दर्ज किए गए..और देश के सर्वोत्तम जाँच एजेसी एनएनआईए ने भी 4 सालों तक पड़ताल की। 30-32 लोगों को आरोपी बनाया गया... 9 लोगों को बिलासपुर हाईकोर्ट में पेश भी किया गया..बावजूद एनआईए भी अब तक यह नहीं बता पाई कि आखिर झीरम हमले को अंजाम देने वाले वे कौन लोग थे, जिन्होंने पर्दे के पीछे से भूमिका निभाई थी..वंही प्रदेस में दोबारा सत्ता में आई भाजपा सरकार के डिप्टी सीएम ने ये तक कह दिया कि झीरम का सच को अपने जेब मे लेकर घूमने वाले पूर्व मुख्यमंत्री क्या कर रहे ही
- देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल पर हुए हमले में नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित सुरक्षा बल के जवानों को मिलाकर कुल 31 लोगों की जान गई थी..यही है कि अब भी पीड़ितों को झीरम के सच के बाहर आने का इंतजार है.।
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